Ibne Safi was born on 26 July 1928 in the town 'Nara' of district Allahabad, India. His father's name was Safiullah and mother's name was Naziran Bibi.

He received a Bachelor of Arts degree from Agra University. In 1948, he started his first job at 'Nikhat Publications' as an Editor in the poetry department. His initial works date back to the early 1940s, when he wrote from India. He also studied at Allahabad University where he was class fellow of Prof. Dr. Mohammad Uzair and one year senior to Mustafa Zaidi [3]. After the independence of Indian and Pakistan in 1947, he began writing novels in the early 1950s while working as a secondary school teacher and continuing part-time studies. After completing the latter, having attracted official attention as being subversive in the independence and post-independence period, he migrated to Karachi, Sindh, Pakistan in August 1952. He started his own company by the name 'Israr Publications'.[4]

He married to Ume Salma Khatoon in 1953. Between 1960 – 1963 he suffered an episode of severe depression, but recovered, and returned with a best-selling Imran Series novel, Dairrh Matwaalay (One and a half amused). In fact, he wrote 36 novels of 'Jasoosi Duniya' and 79 novels of 'Imran Series' after his recovery from depression. In the 1970s, he informally advised the Inter-Services Intelligence of Pakistan on methods of detection. He died of Pancreatic cancer on 26 July 1980 in Karachi, which was coincidentally his 52nd birthday.

At the time of his demise, Ibn-e-Safi had left four sons and three daughters. Dr. Isar Ahmed Safi (son) – Doctor of Medicine an Ophthalmologist who died on 3 July 2005 after suffering from a high grade fever, Abrar Ahmad Safi (son) – Mechanical Engineer with a marine engineering background, lives in US, Dr. Ahmad Safi (son) – Mechanical Engineer holding a PhD. Lives in Karachi, Pakistan, Iftikhar Ahmed Safi (son) – Electrical Engineer lives in Riyadh, Saudi Arabia. Whereas Nuzhat Afroz, Sarwat Asrar and Mohsina Safi are the three daughters.

All these sons and daughters belong to his first marriage that was held in Rawalpindi, Pakistan in 1954. Later, he also married a young woman named Farhat Ara who lived in North Nazimabad. Karachi. She remained under consistent oblivion till her death in 2011.

 

जीवनी

इबने  सफ़ी का जन्म 26 जुलाई, 1928 को भारत में इलाहाबाद के जिला, यू.पी., के नारा गांव में हुआ था। उनके माता-पिता, सफ़ीउल्ला और नूज़ैरा बीबी ने जन्म के समय इनका नाम  असरार अहमद  रखा। बहुत बाद में इन्हें इबने  सफ़ी के नाम से जाना जाने लगा।

इबने सफी के पूर्वज नारा गाँव से आये थे | मूलत: वे कैस्टथ कबीले के हिंदू थे। कई पीढ़ियों पहले, उनके कबीले के नेता राजा वशेषर दयाल सिहं ने इस्लाम को  गले लगा लिया और उन्हें बाबा अब्दुन नबी के नाम से जाना जाने लगा | उनकी कब्र अभी भी गांव नारा के खंडहरों में मौजूद है। इबने सफी के माता पिता दोनों जमीदारों के एक परिवार से आए , और विद्वान इन्सान  थे | उनके दादा मौलवी अब्दुल फतह भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन से पहले भारत में उज्जैन में एक शिक्षक थे। इबने सफी के पिता सफीउल्ला साहब शुरू में नारा से इलाहाबाद गए और फिर वहां से अब जो पाकिस्तान है | वह ब्रिटिश भारतीय सेना के लिये अनुबंधित एक प्रसिद्ध वेंडिंग कम्पनी सैयद ए. एम. वजीर अली एंड कम्पनी के लिये काम करते थे | अपनी सेवा के दौरान, उन्हें देहरादून, देवलाली, दार्जिलिंग, क्वेटा आदि स्थानों पर तैनात किया गया।

इबने सफी की माँ नुजैरा बीबी विद्वान् परिवार से सम्बंधित एक पवित्र महिला थीं | उनके  मायके वालों को “हकीमों का खानदान” (बुद्धिमानों का परिवार ) के रूप में जाना जाता था | उनके बड़े चाचाओं में हकीम एहसान अली और हकीम रहमान अली शामिल थे | वे दोनों पारंपरिक चिकित्सा पर लिखी पुस्तकों के लेखक थे | तिब्ब-ए-रेहमानी और तिब्ब-ए-अहसाणी - दोनों फारसी में लिखी गईं – जिनका उपयोग कई पारंपरिक चिकित्सा विधालयों के पाठयक्रम में किया गया | नूजैरा बीबी अपने बेटे असरार के प्रति बहुत सतर्क थीं , उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनका बेटा हमेश अच्छी संगत में रहे और उसे शिक्षा के लिए उचित अवसर मिले |

इबने सफी के कई भाई-बहन थे, जिनमे उनके भाई इसरार अहमद और बहन गुफैरह खातून शामिल थे जिनकी युवा अवस्था में ही मृत्यु हो गई थी | उनकी केवल एक जीवित बहन अज्रा रेहाना (बालाघात खातून) थी , जिनका निकाह लतीफ़ अहमद सिद्धिकी से हुआ था और 2005 में उनका निधन हो गया | इबने सफी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा नारा में गाँव के स्कूल से प्राप्त की | जब वह केवल आठ वर्ष के थे तो उन्हें तिलिस्मे-ए-होशरुवा के प्रथम भाग को पढने का अवसर मिला | हालाँकि वह पूरी तरह भाषा को समझ न सके परन्तु कहानी ने उनके रचनात्मक मन पर बहुत प्रभाव डाला | उन्होंने तब सभी सात भागों  को कई बार पढ़ा | इबने सफी ने युवा अवस्था में ही लेखन कार्य शुरू कर दिया | जब वह सातवीं कक्षा में थे, तो उनकी पहली कहानी साप्ताहिक राशिद में प्रकाशित हुई, जिसे आदिल राशिद ने संपादित किया था | इबने सफी ने आठवीं कक्षा में कविता लिखना भी शुरू कर दिया | वह प्रसिद्ध कवि जिगर मुरादावादी से इतना  प्रभावित थे कि उनकी पिछली कविता “खुरियत” (शराब के इस्तेमाल और प्रभाव के बारे में कविता) पर थी |

इबने सफी ने अपनी माध्यमिक शिक्षा इलाहाबाद से प्राप्त की, क्यूंकि इस समय तक उनके परिवार ने नारा से स्थानांतरण कर दिया था | उन्होंने अपनी मैट्रिक की शिक्षा डी.ए.वी. स्कूल इलाहाबाद भारत में पूरी की | मैट्रिक के दौरान थोड़े समय के लिये, वह कम्यूनिस्ट बच्चों के साथ शामिल हो गये और सामजिक बुराइयों के खिलाफ कविता लिखना शुरू कर दिया | हालाँकि जल्द ही वह इस समूह और इसकी विचारधारा से दूर चले गये | स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान और उसके बाद, उन्हें अपने विचारों के लिये प्रगतिशील विचारक का दर्जा दिया गया था और भारत में उनकी गिरफ़्तारी के लिए वारंट जारी किये गये थे |


इबने सफी ने अपनी इंटरमीडिएट (हाई स्कूल सर्टिफिकेट) ईवेन क्रिश्चिन कॉलेज इलाहाबाद भारत से पूरी की | यह एक सह-शिक्षा महाविद्यालय था और उस वातावरण में  उनकी कविताओं का काफी विकास हुआ | वह कॉलेज के छात्रावासों में आयोजित  कवि सम्मेलनों में अक्सर भाग लेते थे | हालाँकि, अपने प्रथम वर्ष में वह वार्षिक “मुशायरा” में अपनी कविताओं को पढने के लिए अनिच्छुक थे | दूसरे वर्ष में उन्हें द लिटरेरी सोसाइटी का अध्यक्ष चुना गया | इसके लिये उन्हें अपनी कविता बांसुरी की आवाज (voice of the flute) का पाठ करने की आवश्यकता थी | उर्दू संकाय के अध्यक्ष मौलाना अनवर-उल –हक ने भविष्यवाणी की थी कि भविष्य में इबने सफी एक महान कवि होंगे | यह कविता उनके अंग्रेजी के प्रोफेसर श्री हिंगिस द्वारा भी सराही गई जो कि उर्दू कविता में बहुत रूचि रखते थे, उन्होंने टिप्पणी की :

“फिराक रुब्यात और आपकी कविताओं को छोड़कर, बाकी सभी केवल कविता की प्रतिध्वनियाँ प्रतीत होने लगे हैं |”

1947 में इबने सफी ने इलाहाबाद विश्वविधालय में दाखिला लिया, जहाँ डा. सैयद एजाज हुसैन के व्याख्यान ने उनके साहित्यिक और मानसिक विकास में योगदान दिया | हालाँकि यह अवधि बहुत कम थी क्योंकि स्वतंत्रता दंगों की शुरुआत हुई थी और विश्वविधालय परिसर में भी एक घटना हुई थी | पहले से ही तनावपूर्ण स्थिति की गम्भीर प्रकृति के कारण, उन्हें घर पर रहने के लिये कहा गया था | विभाजन के बाद, जब 1948 में स्थिति सामान्य थी, तो उन्होंने विश्वविधालय में दोबारा दाखिला नहीं लिया क्योंकि उनके सभी सहयोगी अब उनसे एक वर्ष आगे थे | इलाहाबाद विश्वविधालय में प्राइवेट छात्रों के लिये कोई जगह नहीं थी | उतर प्रदेश में केवल आगरा विश्वविधालय ने प्राइवेट छात्रों को इस शर्त के साथ अनुमति दी कि उम्मीदवार को दो साल का शिक्षण का अनुभव होना चाहिये | इबने सफी ने भारत के आगरा में आगरा विश्वविधालय से कला स्नातक  की डिग्री प्राप्त की | इस अवधी के दौरान इबने सफी ने कई करीबी दोस्त बनाये | नारा से निकलने के बाद उनके परिवार ने इलाहबाद में हसन मंजिल के क्वार्टर नम्बर 15 और 16 में निवास किया था | यहीं पर इबने सफी दो भाइयों अब्बास हुसैनी और जमाल रिजवी (शकील जमाली) और उनके चचेरे भाई  सरवर जहान (बाद में एक पाकिस्तानी कलाकार सरवर हुसैन के नाम से जाने गये ) और मुजावीर हुसैन रिजवी (इबने सईद) के साथ मिले | इस अवधी के दौरान इबने सफी के अन्य मित्रों में डा. राही मासूम रजा, इश्तयाक हैदर, यूसुफ नकवी, हमीद कैसर, कमार जल्साई, नाजिश परताब गढ़ी और तेग इलाहाबादी (प्रसिद्ध कवि मुस्तफा जैदी)  शामिल है |

1948 में, अब्बास हुसैनी ने  नकहत पब्लिकेशन की स्थापना की | इबने सईद गद्य खंड के संस्थापक बने और इबने सफी कविता खंड के संपादक बने | इस समय इबने सफी ने नियमित आधार पर विभिन्न साहित्यिक शैलियों के साथ प्रयोग करना शुरू कर दिया, जिसमें लघु कथाएं, हास्य और व्यंग शामिल थे | उन्होंने सनकी सैनिक और तुगलक फरगान जैसे छदम नामों का इस्तेमाल किया | द नकहत के लिए उनकी पहली कहानी " फरार " (The Escape) थी, जिसे जून 1948 में प्रकाशित किया गया था | हालाँकि इबने सफी अपने काम से संतुष्ट नहीं थे | आठ वर्षीय बच्चा जिसने तिलिस्मे-ए-होशरुवा को पूरी तरह से निगल लिया था उन्हें कुछ अलग करने के लिए प्रेरित कर रह था विशेष रूप से गद्य के क्षेत्र में | इबने सफी ने सोचा की शीध्र ही वह अपने भीतर के बच्चे के आग्रहों का पालन करेंगे और अपनी कल्पनाओं को राइडर हग्गरड के फर्जी देश में ले जायेंगे, इस सब से वे और भी अधिक निराश हो गये |

1951 के अंत की तरफ आते हुये, एक वरिष्ठ नागरिक ने टिप्पणी की कि उर्दू में केवल कामुक कहानियां बिक रही हैं और बाकी सभी अनबिकी हैं | इबने सफी इस सज्जन के साथ सहमत नहीं थे | उन्होंने कहा कि कोई भी अश्लील साहित्य की इस बाढ़ को रोकने की कोशिश नहीं कर रह है | एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि जब तक कोई प्रतिस्थापित साहित्य नहीं बनाया जाता और उसे बाजार में नहीं डाल दिया जाता तब तक यह प्रवृति नहीं रोकी जा सकती है | इबने सफी ने गंभीरता के साथ परिस्थितियों के बारे में सोचा, कि कैसा साहित्य बाजार में असर करेगा, और फिर वही आठ वर्षीय बच्चा उनके सामने प्रकट हुआ | वह जानते थे कि अपने अस्सी के दशक में भी लोग तिलिस्मे-ए-होशरुवा से चिपके हुए थे | इबने सफी ने खुद से वादा किया कि वह उर्दू अश्लील साहित्य में कुछ हद तक बदलाव की कोशिश करेंगे | इबने सफी की सलाह के साथ, अब्बास हुसैनी ने मासिक जासूसी उपन्यासों को प्रकाशित करने की व्यवस्था की | श्रृंखला का नाम " जासूसी दुनिया " (The World of Espionage) था, और यह पहली बार था कि इबने सफी ने एक गुमनाम पेन नाम इबने सफी के नाम से लिखना शुरू किया | अपने मूल पात्रों, इंस्पेक्टर विनोद और सार्जेंट हमीद के साथ, पहला उपन्यास " दिलेर मुजरिम " (The Brave Criminal) मार्च 1952 में प्रकाशित हुआ था | उपन्यास की कहानी विक्टर गुन के उपन्यास ‘आयरनसाइड्स लोन हैण्ड’ से ली गई थी |

इस समय (1949-1950) में इबने सफी पेशे से इस्लामिया स्कूल इलाहाबाद के एक माध्यमिक विधालय के शिक्षक थे, और बाद में यादगारे-हुसैनी स्कुल में | उन्होंने स्कुल की नौकरियों को बनाए रखा, और अपनी शिक्षा समाप्त करने के लिए अंशकालीन अध्ययन जारी रखा | बहुत कम लोग जानते हैं कि इबने सफी को संगीत और ड्राइंग का भी बहुत शौक था | उनके पास गाने के काबिल एक अच्छी आवाज थी और वह अपने उपन्यासों के ड्राफ्ट के लिए चित्र भी बनाया करते थे | अगस्त 1952 में अपनी शिक्षा ख़त्म करने के बाद इबने सफी अपनी माँ और बहन के साथ पकिस्तान चले गये | वे कराची में अपने पिता के पास चले गये, जो  1947 में ही वहां आ गये थे | स्थानीय तौर पर इबने सफी का निवास स्थान सी -1 क्षेत्र लालूखेत में था | (अब लियाकताबाद के नाम से जाना जाता   है |) इसके बाद इबने सफी ने असरार पब्लिकेशनस कि स्थापना की और पाकिस्तान तथा भारत से एक साथ जासूसी दुनिया का प्रकाशन शुरू कर दिया | उनका जो सम्बन्ध अपने पाठकों के साथ गठित हुआ था उसे दोनों देशों की राजनीतिक सीमा भी नहीं तोड़ पाई |

1953 में इबने सफी ने उम्मी सलमा खातून से शादी कर ली | उनका जन्म 12 अप्रैल 1938 को मोहम्मद अमीन अहसान और रियाज फातिमा बेगम के घर हुआ था | उनके पिता भारत के सुल्तानपुर में पुलिस उपाध्यक्ष थे | सलमा की पारिवारिक पृष्ठभूमि साहित्यिक और धार्मिक व्यक्तित्व वाले इंसानों की थी | उनके दादा कवि मुहम्मद एहसान वहशी , हाजी इमद्दुल्ला मुहाजिर मक्की के शिष्य थे | सलमा के चाचा मौलाना नजम हसन, हाकिम उम्मत मौलाना अशरफ अल थानवी क्युड्स सिरुहू के उपाध्यक्ष (खलीफा ) थे | सलमा के भाई, मेकेन अहसान कलीम 1976 में अपने निधन तक दैनिक मशरिक (लाहौर पकिस्तान) के मुख्य संपादक थे | सलमा की बहन साफिया  सिद्दीकी भी एक लेखक हैं | 1955 में इबने सफी ने एक नए चरित्र राजेश  का निर्माण किया और राजेश श्रृंखला प्रकाशित करना शुरू कर दिया | इस श्रृंखला का पहला उपन्यास खौफनाक इमारत (The Frightening Building) अगस्त 1955 में ए. एंड एच. पब्लिकेशन, हसन अली अफान्दी रोड कराची पकिस्तान द्वारा प्रकाशित किया गया था जबकि भारतीय संस्करण नवम्बर 1955 में  मासिक नकहत पब्लिकेशन इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित किया गया था |

अक्टूबर 1957 में  इबने सफी ने असरार पब्लिकेशन कराची (लालूखेत) की स्थापना की और पाकिस्तान से पहला जासूसी दुनिया का उपन्यास ठंडी आग (The Cold Fire) प्रकशित किया | यही उपन्यास एक ही समय पर जासूसी दुनिया इलाहाबाद द्वारा भारत में प्रकाशित किया गया था | 1958 में इबने सफी नजीमाबाद नं. 2 में अपने नवनिर्मित घर में चले गये, जो उनके शेष जीवन के दौरान उनका निवास स्थान बना रहा | हालाँकि जनवरी 1959 में उन्होंने असरार प्रकाशन को फिरदौस कालोनी, कराची – 18 के नए पते पर स्थानांतरित कर दिया था, उन्होंने घर से लिखने में आसानी महसूस की | जासूसी दुनिया के लिए राजेश सीरीज के आलावा उनके प्रकाशन ने रिकार्ड तीन से चार उपन्यासों को मासिक तौर पर छापा |

जून 1960 तक इबने सफी ने जासूसी दुनिया के लिए अठासिवां उपन्यास " प्रिंस वेह्शी " और राजेश सीरिज के लिए इक्तालिस्वां उपन्यास " मशीन की फुफकार " लिख दिया था | इस अवधि के दौरान उन्होंने जासूसी दुनिया पत्रिका के संस्करण के साथ भी प्रयोग किया | (पहला संस्करण नवम्बर 1959 में प्रकाशित किया गया था |) हालाँकि केवल चार ही संस्करण प्रकाशित हुए थे | अति सोच और लेखन ने अंतत: उनके स्वास्थ्य पर बोझ डाल दिया, और पत्रिका संस्करण बन्द कर दिया गया | 1960 और 1963 के दौरान इबने सफी सिजोफ्रेनिया से पीड़ित हो गये और उन तीन वर्षों में उन्होंने एक शब्द भी नहीं लिखा | 1963 में अपने परिवार, दोस्तों और प्रशंसकों की दुआओं तथा कराची के हकीम इकबाल हुसैन के इलाज से इबने सफी अंतत: बीमारी से मुक्त हुये |

लेखक ने 25 नवम्बर 1963 को राजेश सीरीज के बेस्टसेलर उपन्यास " हम्बग दी ग्रेट " के साथ एक महान वापसी की, जिसका उद्घाटन भारत के पूर्व गृह मंत्री (बाद में भारत के प्रधानमंत्री ) लाल बहादुर शास्त्री जी द्वारा किया गाया | इस उपन्यास की मांग इतनी अधिक थी कि एक सप्ताह के भीतर भारत में एक दूसरा संस्करण प्रकाशित हुआ | इस संस्करण का उदघाटन तत्कालीन प्रांतीय कानून मंत्री अली जहीर ने किया था | 1 9 67 में, इबने  सफ़ी के पिता, सफ़ीउल्लाह साहब, अपनी नौकरी से सेवानिवृत्त हुए और उसी वर्ष 27 जून 1967 को उनका निधन हो गया।सत्तर के दशक के मध्य के दौरान, पाकिस्तान की इंटर सर्विस इंटेलिजेंस ने अनौपचारिक रूप से खोज के तरीकों पर नए रंगरूटों को व्याख्यान देने के लिए इनकी सेवाओं का इस्तेमाल किया। 1997 की गर्मियों में इबने सफी की माँ का निधन हो गया | उनके दुखद निधन पर इबने सफी के दर्द ने दिल को छूने वाली कविता माँ का आकर ले लिया | सितम्बर 1979 को इबने सफी को पेट की पीड़ा ने घेर लिया | उस वर्ष में दिसम्बर तक यह पुष्टि हो गई कि यह दर्द आग्न्याश्य के मुख पर कैंसर का परिणाम था |

उनका उपचार उनके पारिवारिक चिकित्सकों डा. सईद अख्तर जैदी और डा. कमरुद्दीन सिद्दीकी द्वारा किया गया | उनके आखरी दिनों में जनरल फिजिशियन डा. राब और कैंसर विशेषज्ञ डा. सायेद हसन मंजूर जैदी ने इनकी देखभाल तथा उपचार किया | हालाँकि दिसम्बर 1979 और जुलाई 1980 के बीच उनकी हालत गम्भीर होती गई और तेजी से बिगडती गई, फिर भी इबने सफी ने लिखना नहीं छोड़ा | शनिवार 26 जुलाई 1989 को (रमजान 12, 1400 ए. एच.) फजरों के  समय में इबने सफी का निधन हो गया | उनके बिस्तर पर उस समय राजेश सीरीज का अधूरा उपन्यास आखिरी आदमी पड़ा हुआ था | इबने सफी अपने पीछे चार बेटों और तीन बेटियों को छोड़ गये |

1.    डा. इसरार अहमद सफी :      डा. आफ मेडिसीन्स नेत्र रोग विशेषज्ञ जिनका 3 जुलाई 2005 को उच्च ग्रेड बुखार से पीड़ित होने पर निधन हो गया |

2.    अबरार अहमद सफी :  मैरीन इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि के साथ एक मैकेनिकल इंजीनियर | सयुंक्त राज्य अमेरिका में रहते हैं |

3.    डा. अहमद सफी :  मैकेनिकल इंजीनियर जो पी. एच. डी. होल्डर  कराची पाकिस्तान में रहते हैं |
4.    इफ्तिखार अहमद सफी :  इलेक्ट्रीकल इंजीनियर रियाद सउदी अरब में रहते हैं |

नुजत अफरोज, सरत असर और मोहसिना सफी तीन बेटियां हैं |  इबने सफी की पत्नी उम्मी सलमा खातून का भी 12 जून 2003 को निधन हो गया |